#शब्द_मीमाँसा #19
शब्द- आत्मीय लगाव
शब्द संप्रेषक - नवनीत जी
दिनाँक - 10/12/2017
एक लंबा अरसा गुजर गया था शिव से मिले हुए । कुछ अजीब सी बेचैनी भी थी मिलने की और यह ख्याल भी कि इतने व्यस्त महादेव से मात्र मिलने ही जाना अच्छा नही है उनके समय को बेजा नष्ट करना । खोजते खोजते मिल ही गया बहाना मिलने का शिव से । आज फिर से उनकी शरण में पहुँचा मुझे देखकर शिव मुस्करा रहे थे । हमने अभिवादन किया ; उन्होंने भी बिहसते हुए स्वीकार किया और शिव बोले - कैसे आना हुआ हिमांशु इतने दिनों बाद हमारी याद आई ?
हमने कहा - हे शिव ! हमने सच में कभी आपको याद नहीं किया क्योंकि आप हमसे कभी बिसरे ही नहीं जो याद करने की आवश्यकता पड़े ।
महादेव - मंद-मंद मुस्कान के साथ बोले सुंदर है आज कल कुछ ज्यादा वाक्पटु नहीं हो गया है तू ?
मैं बोला - जो भी हूँ आपकी कृपा से हूँ । बिना आपके न मैं हूँ और न हम ।
नीलकंठ ने कहा - अच्छा बोल तू जिस काम से आया है ।
मैंने कहा - हे शिव ! प्राथमिक उद्देश्य तो आपसे मिलना था उसके लिए एक बहाना खोजा है जिसका नाम है आत्मिक लगाव । वैसे ये "आत्मिक लगाव" होता क्या है ?
गंगाधर बोले - तेरे पैर क्यों भीगे हुए है ? बरसात तो हुई नहीं , फिर कहां रास्ते में भिगो लिया किसी नदी या तालाब में घुस गया था क्या ?
मैं बोला - अरे नहीं भगवन वो तो आ रहा था तो रात में ओस पड़ी हुई थी घासों पर उसी से भीग गया । पर आप आत्मिक लगाव क्या होता है बताइये न ये होता कैसे है ?
शिव बोले - बस इसी ओस की तरह होता है आत्मिक लगाव । जैसे किसी ने आज तक आसमान से गिरती हुई ओस की बूंदों को नहीं देखा होगा पर हरी मखमली पत्तियों के तृणों पर ओस की बूदें विद्यमान दर्शित होती हैं । ठीक ऐसे ही एक भावना स्वमेव किसी के हृदय में उत्पन्न हो जाती है किसी के प्रति न तो वह उसका कारण जान पाता है और न ही वो कार्य जिससे वो उत्पन्न होती है । इसे ही नैसर्गिक प्रेम से भी संज्ञापित किया है साहित्य ने ।
मैंने भाव विह्वल शिव को देखते हुए पूछा - क्या सामने वाले व्यक्ति के कोई ऐसे कार्यकलाप जिससे दूसरे के मन में उद्दीपन उत्पन्न हो ऐसा लक्षित करके किया गया हो उसके फलस्वरूप भी उत्पन्न होने पर वो "आत्मिक लगाव" होगा ।
शिव बोले - नहीं पगले । आत्मिक लगाव यदि किसी नकारात्मक आशय से उद्दीपन देकर उत्पन्न किया जाता है तो वो कहाँ से नैसर्गिक अथवा आत्मिक रह गया ? आत्मिक का अर्थ तुझे पता है न कि ये आत्म शब्द से बना है और इसका अर्थ होता है स्वयं अर्थात जो प्राकृतिक रूप से स्वयं उत्पन्न होता है व्यक्ति के हृदय में यथा ममता, वात्सल्य, प्रेम आदि ।
अगर कोई लगाव उत्पन्न करने के लिए असम्यक असर, दुर्व्यापदेशन, झूठ, भूल, कपट अथवा स्वार्थ आदि का प्रयोग किया जाता है तो वह आत्मिक कहाँ रह गया वह तो वाह्य उद्दीपन द्वारा उत्पन्न हो गया ।
मैंने शिव को धन्यवाद ज्ञापित किया और पुनः वापस लौट पड़ा अपने घर । अब तो शिव से मिलाप भी हो गया और बेचैनी भी समाप्त हो गयी ।
शब्द- आत्मीय लगाव
शब्द संप्रेषक - नवनीत जी
दिनाँक - 10/12/2017
एक लंबा अरसा गुजर गया था शिव से मिले हुए । कुछ अजीब सी बेचैनी भी थी मिलने की और यह ख्याल भी कि इतने व्यस्त महादेव से मात्र मिलने ही जाना अच्छा नही है उनके समय को बेजा नष्ट करना । खोजते खोजते मिल ही गया बहाना मिलने का शिव से । आज फिर से उनकी शरण में पहुँचा मुझे देखकर शिव मुस्करा रहे थे । हमने अभिवादन किया ; उन्होंने भी बिहसते हुए स्वीकार किया और शिव बोले - कैसे आना हुआ हिमांशु इतने दिनों बाद हमारी याद आई ?
हमने कहा - हे शिव ! हमने सच में कभी आपको याद नहीं किया क्योंकि आप हमसे कभी बिसरे ही नहीं जो याद करने की आवश्यकता पड़े ।
महादेव - मंद-मंद मुस्कान के साथ बोले सुंदर है आज कल कुछ ज्यादा वाक्पटु नहीं हो गया है तू ?
मैं बोला - जो भी हूँ आपकी कृपा से हूँ । बिना आपके न मैं हूँ और न हम ।
नीलकंठ ने कहा - अच्छा बोल तू जिस काम से आया है ।
मैंने कहा - हे शिव ! प्राथमिक उद्देश्य तो आपसे मिलना था उसके लिए एक बहाना खोजा है जिसका नाम है आत्मिक लगाव । वैसे ये "आत्मिक लगाव" होता क्या है ?
गंगाधर बोले - तेरे पैर क्यों भीगे हुए है ? बरसात तो हुई नहीं , फिर कहां रास्ते में भिगो लिया किसी नदी या तालाब में घुस गया था क्या ?
मैं बोला - अरे नहीं भगवन वो तो आ रहा था तो रात में ओस पड़ी हुई थी घासों पर उसी से भीग गया । पर आप आत्मिक लगाव क्या होता है बताइये न ये होता कैसे है ?
शिव बोले - बस इसी ओस की तरह होता है आत्मिक लगाव । जैसे किसी ने आज तक आसमान से गिरती हुई ओस की बूंदों को नहीं देखा होगा पर हरी मखमली पत्तियों के तृणों पर ओस की बूदें विद्यमान दर्शित होती हैं । ठीक ऐसे ही एक भावना स्वमेव किसी के हृदय में उत्पन्न हो जाती है किसी के प्रति न तो वह उसका कारण जान पाता है और न ही वो कार्य जिससे वो उत्पन्न होती है । इसे ही नैसर्गिक प्रेम से भी संज्ञापित किया है साहित्य ने ।
मैंने भाव विह्वल शिव को देखते हुए पूछा - क्या सामने वाले व्यक्ति के कोई ऐसे कार्यकलाप जिससे दूसरे के मन में उद्दीपन उत्पन्न हो ऐसा लक्षित करके किया गया हो उसके फलस्वरूप भी उत्पन्न होने पर वो "आत्मिक लगाव" होगा ।
शिव बोले - नहीं पगले । आत्मिक लगाव यदि किसी नकारात्मक आशय से उद्दीपन देकर उत्पन्न किया जाता है तो वो कहाँ से नैसर्गिक अथवा आत्मिक रह गया ? आत्मिक का अर्थ तुझे पता है न कि ये आत्म शब्द से बना है और इसका अर्थ होता है स्वयं अर्थात जो प्राकृतिक रूप से स्वयं उत्पन्न होता है व्यक्ति के हृदय में यथा ममता, वात्सल्य, प्रेम आदि ।
अगर कोई लगाव उत्पन्न करने के लिए असम्यक असर, दुर्व्यापदेशन, झूठ, भूल, कपट अथवा स्वार्थ आदि का प्रयोग किया जाता है तो वह आत्मिक कहाँ रह गया वह तो वाह्य उद्दीपन द्वारा उत्पन्न हो गया ।
मैंने शिव को धन्यवाद ज्ञापित किया और पुनः वापस लौट पड़ा अपने घर । अब तो शिव से मिलाप भी हो गया और बेचैनी भी समाप्त हो गयी ।