Wednesday, August 30, 2017

दहेज

#शब्द_मीमांसा #7

शब्द - दहेज

शब्द संप्रेषक - कुलदीप राठी निंदाना जी


 हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में 4 मान्य तथा 4 अमान्य प्रकार की विवाह पद्धतियां प्रचलित है । इसमें से आर्ष विवाह पद्धति में वर्णन है कि पिता वस्त्राभूषणों से सुसज्जित पुत्री का विवाह योग्य वर से करता है तथा उसे उपहार आदि प्रदान करता है । यहीं से दहेज की उत्पत्ति होती है ।

यदि हम दहेज के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो पाते हैं "ददाति हिरण्यं जनक: " अर्थात पिता द्वारा दिया हिरण्य अर्थात स्वर्ण या धन" । यह वास्तव मे वही सहदायिक सम्पत्ति होती थी जो कि बेटी का पिता की सम्पत्ति में हिस्सा होता था ।

दहेज सहित समस्त धन जो कि स्त्री को प्राप्त होता है उसे स्त्रीधन से संज्ञापित किया जाता है अतः हम पहले स्त्रीधन की बात करते हैं पहले । याज्ञवल्क्य के अनुसार -

पितृमातृपतिभातृदत्त मध्यमग्नयुपागतं ।

आधिवेदनिकायं च स्त्रीधनं परिकीर्तितं ।।

अर्थात माता, पिता, पति तथा भाई द्वारा दिया गया उपहार तथा अध्याग्नि एवं अधिवेदनिक में प्राप्त उपहार आदि स्त्री की सम्पत्ति कही जाती है ।

स्मृतियों के अनुसार निनमलिखित 16 चीजे स्त्रीधन के अंतर्गत आती हैं ।

1- अध्यग्नि -- वैवाहिक अग्नि के सम्मुख दिया गया उपहार;

2- अध्यवह्निका- वधू को पतिगृह जाते समय दिया गया उपहार;

3- प्रीतिदत्त- सास- ससुर द्वारा स्नेहवश दिए गए उपहार ;

4- पतिदत्त- पति द्वारा दिये गए उपहार ;,

5- पदवंदनिका - नतमस्तक प्रणाम करते समय बड़ों द्वारा दिया गया उपहार;

6- अन्वयध्येयक- विवाह के बाद पति के परिवार द्वारा दिया गया उपहार ;

7- अधिवेदनिका- दूसरी वधू लाने पर प्रथम वधू को दिया गया उपहार;

8- शुल्क- विवाह हेतु प्रदान किया गया धन ;

9- वन्धुदत्त- माता पिता के सम्बन्धियों द्वारा दिया गया धन;

10- यौतिक - विवाह के समय जब पति पत्नी एक स्थान पर बैठे हों उस समय दिए गए उपहार;

11- आयौतिक - वे उपहार जो यौतिक के अतिरिक्त हैं;

12- सौदायिक - माता पिता अथवा भाई  से प्राप्त अचल संपत्ति;

13- असौदायिक- माता-पिता अथवा भाई से प्राप्त चल सम्पत्ति;

14- वृत्ति - भरण - पोषण के लिए दी गयी सम्पत्ति अथवा धन ;

15- पारिभाषिक- अग्नि के सम्मुख तथा वधु गमन के समय प्राप्त उपहार ; तथा

16- अन्य सम्पतियाँ जो किसी अन्य स्रोत से प्राप्त होती हैं ।

याज्ञवल्क्य के अनुसार -

दुर्भिक्षे धर्मकार्ये च व्यधौ सम्प्रतिरोधके ।

गृहीतं स्त्रीधनं भर्त्ता ब स्त्रीयै दातुम् अर्हति ।


अर्थात दुर्भिक्ष(अकाल), धर्म-कार्य तथा रोग - व्याधि आदि दशाओं को छोड़कर किसी अन्य दशा में यदि पति स्त्रीधन में से कुछ लेता है तो उसे लौटना आवश्यक है ।

अर्थात किसी भी तरह का धन जो पत्नी को प्राप्त हुआ है अथवा पत्नी के गृह से प्राप्त हुआ है उसपर पति का कोई अधिकार नहीं पत्नी की मृत्यु के उपरांत ही वो धन पति के अपत्यों को प्राप्त होता था । इस प्रकार धर्मतः दहेज के धन पर पति अथवा उसके परिवार वालों का कोई अधिकार ही नहीं रह जाता किन्तु ये नियम विकृत हो गया और आज के दौर में यह धन पति और उसके सम्बन्धियों के प्रयोग में आने लगा जिसके कारण दहेज मांगने की प्रथा का जन्म हुआ यदि यही विचलन रोक दिया जाए तो दहेज एक कुप्रथा न होकर फिर से अपने पूर्व सुंदर रूप स्त्रीधनं को प्राप्त कर लेगी ।

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