शब्द मीमांसा २५
शब्द – ॐ
दिनांक – ०२/०३/२०१८
आज फिर समय मिल गया शिव से
मुखातिब होने का | उसे समय क्या कहें यूँ समझिये जरूरत थी मुझ जैसे स्वार्थी लोग
जो बिना जरूरत के श्वास भी नहीं लेते हैं | गया तो शिव बोले कहो बालक कैसे आना हुआ
? मैंने कहा बस आपके दर्शनों की अभिलाषा और कुछ प्रश्न खिंच लाते है भगवान आपके
पास |
शिव बोले – दर्शन तो हो गया
अब तो जल्दी से सवाल भी बोल दो जल्दी से | मैंने कहा – हे महादेव ! यह ॐ क्या है ?
आखिर इसका अर्थ और संरचना की है ?
भगवान शिव हंसते हुए बोले –
बड़ा खतरनाक सवाल पूछा तूने एक बार इसी सवाल के कारण ब्रह्मा जी बंदी बना लिए गये
थे |
मुझे आश्चर्य हुआ आखिर
ब्रह्मा जी क्यों बंदी बना लिए गये थे इस सवाल के लिए ? मैंने पूछा – क्या हुआ था
भगवान पूरा पूरा बताइए |
शिव बोले – एक बार
कार्तिकेय ने यही प्रश्न ब्रह्मा जी से किया था की हे ब्रह्मदेव आपको तो सभी चीजों
का ज्ञान रहता है इसलिए आप मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिये कि ॐ क्या है ? इसपर
ब्रह्मा जी जब बताने से असमर्थता जताई तो उन्होंने कहा की अब तो आपको मेरा बंदी
बनना पड़ेगा और विडम्बना देखिये कर्ता( ब्रह्मा जी ) कृति (कुमार कार्तिकेय) के
बंदी बनकर साथ चल पड़े | ब्रह्मा जी के सृजन का कार्य बाधित होने के कारण समस्त
सृष्टि में असंतुलन की स्थिति आ गयी सभी देव मेरे पा आये और सारा हाल बताया तो
मैंने कार्तिकेय से पूछा आपने ब्रह्मा जी को बंदी क्यों बनाया ? इसपर कुमार
कार्तिकेय ने कहा – पिता जी मैंने कहा बनाया उन्हें बंदी वो तो स्वयं बंदी बने हैं
अपने अज्ञान के अन्धकार के | आप स्वयं सोचिये जिन्हें ॐ का ज्ञान नहीं है वो
सृष्टि का निर्माण कैसे करता होगा ? मैंने कार्तिकेय से पूछा की तो फिर उन्हें
मुक्त करने के लिए क्या करना होगा ? कुमार बोले पिता जी आप ही मुझे ॐ का अर्थ
बताइए और इन्हें मुक्त करा लीजिये | मैंने कहा मुझे तो नही पता है तुमको पता हो तो
बताओ | इसपर कुमार बोले इसके लिए आपको मुझे अपना गुरु मना पड़ेगा | इस तरह
कार्तिकेय ने मेरी गोद में बैठकर अपने पिता तथा शिष्य यानी मुझे ॐ शब्द का उपदेश
दिया |
शिव की बातें सुनकर मैंने
शिव से कहा वाह बहुत रुचिकर कथा है भगवन आगे क्या बताया कुमार ने ये बताने का कष्ट
करें प्रभु | मेरी बात पर भगवान शिव ने कहा – पागल लडके बताने के लिए ही तो ये कथा
प्रारम्भ की है मैंने इतना अधीर्ण क्यों होता है तू |
आगे नीलकंठ ने कहना शुरू
किया – सुन ! ॐ एक अक्षर, एक शब्द तथा नाद
तीनों एक साथ है यह तीन ध्वनियों का मेल है ‘अ’, ‘उ’ तथा ‘म’ | दुनिया का कोई भी
भाषा बोलने वाले व्यक्ति का जब मुंह खुलता है तो ‘अकार’ के साथ तथा बंद होता है
‘मकार’ के साथ तथा ‘उकार’ की दशा आधा खुला तथा आधा बंद रहता है अतैव विश्व की
समस्त ध्वनियाँ तथा स्वर इसी ॐ में समाहित है ॐ एक विशिष्ट वैश्विक ध्वनि है तथा
इश्वर का प्रतीक भी |
मंडूकोपनिषद के अनुसार
समस्त जाग्रत अवस्था का प्रपंच ‘अ’ से प्रारम्भ होता है तथा सुसुप्तावस्था के
प्रपंच ‘म’ से शुरू होते हैं एवं स्वप्नावस्था के प्रपंच ‘उ’ से प्रारम्भ होते हैं
|जिससे तीनों अवस्थाओं के प्रपंच आत्म तथा ब्रह्म से प्रारम्भ होकर पुनः उसी में
विलीन हो जाते हैं वैसे ही ॐ शांति से उत्पन्न्होकर उसी में विलीन हो जाता है अतैव
ॐ शब्द भी है और निःशब्द भी |
जब हम ओंकार की ध्वनि करते
हैं तो दो ओंकार के मध्य जो अन्तराल की निःशब्दता होती है उसे अमात्रा कहा जाता है
वह निर्गुण ब्रह्म का प्रतीक है | जैसे ‘अ’, ‘उ’ में तथा ‘उ’, ‘म’ में विलीन हो
जाता है तथा ‘म’ अंत में निःशब्दता में विलीन हो जाता है ठीक उसी तरह उपासना में
जब हम ॐ का उच्चारण करते हैं तो उस नाद द्वारा स्थूल, सूक्ष्म में विलीन होने लगता
है और सूक्ष्म कारण में विलीन होने लगता है तदन्तर कारण इन सभी भौतिक बाधाओं को का
अतिक्रमण करके आत्मा तथा आत्मा, ब्रह्म में विलीन होने लगती है | इस तरह ॐ प्रणव
है जिससे इश्वर का प्रणयन किया जाता है |
कुछ समझ भी आया या बैठे
बैठे सुन ही रहा है ? – शिव के ये वचन सुन मेरी तंद्रा भंग हुई | मैंने कहा हे शिव
इतना विशद ? एक प्रश्न और था की ये मन्त्रों के प्रारम्भ और अंत में ॐ का उच्चारण
क्यों किया जाता है ?
शिव बोले – तेरे प्रश्न
समाप्त नहीं होने वाले न ? तो सुन जब ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण प्रारम्भ किया था
तो दो शब्दों के साथ किया था “ॐ” तथा “अथ” अतः प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ ॐ शब्द
के साथ किया जाना शुभ होता है |
मंडूकोपनिषद का कथन है –
“ओंकार धनुष है तथा जीवात्मा बाण है एवं लक्ष्य ब्रह्म है | बाण को धनुष द्वारा
इतने लक्ष्य के साथ छोड़ा जाना चाहिए की वह लक्ष्य के साथ बिद्ध होकर उसी के एकाकार
हो जाये |
मैंने शिव को धन्यवाद
ज्ञापित किया तथा उनका अभिवादन कर पुनः अगले विशेष प्रश्न तक के लिए विदाई लेकर
लौट आया |
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