Wednesday, August 30, 2017

कला

#शब्द_मीमांसा #6

शब्द-कला

शब्द संप्रेषक - रमेशचन्द्र जोशी जी ।

दिनाँक - 15/06/2017

भारत एक उत्सव धर्मी राष्ट्र है हमने हमेशा अपनी अभिव्यक्ति को सुंदर स्वरूप देने का प्रयास किया यथा अभिव्यक्तियों को सुंदर रूप देने का प्रयास किया । जैसे मथुरा शैली की एक मूर्ति में जो कि बुद्ध के बुद्धत्व प्रप्ति की है  वो एक ऐसे व्यक्ति की मूर्ति है जिसने अभी अभी 12 वर्ष की तपस्या के उपरांत आंखे खोली हैं और मात्र एक कटोरा खीर का ग्रहण किया है किंतु उनका शरीर एक दिव्य अलौकिक आभा से चमक रहा है और कृषकाय होने के स्थान पर हष्ट पुष्ट है । हमने अपने भावों के इसी प्रकार की अभिव्यक्ति को कला शब्द से सम्बोधित करते हैं ।

कला शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की "कृ" धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है "कार्य करना" अर्थात "अपने कार्य द्वारा अपने मन के विचारों की अभिव्यक्ति" । मैथिली शरण गुप्त ने अपनी कृति साकेत में कहा है कि " अन्तःकरण की प्रवृत्तियों को व्यक्त करना ही कला है।"

वैसे तो कला के अनेक अर्थ हैं जैसे चन्द्रमा के घटने बढ़ने को कला कहा जाता है । समुद्र के घटने बढ़ने को भी कला कहते हैं । व्यक्ति के उम्र के साथ विकसित होने को भी कला कहा जाता है ।

कला शब्द का सबसे पहले प्रयोग भरतमुनि द्वारा अपने ग्रन्थ "नाट्यशास्त्र" में किया गया है इन्हें ही गायन का जनक माना जाता है  इन्होंने ही वेदों को संगीत बद्ध करने के लिए राग रागिनियों को धरती पर अवतरित किया ।

ललितविस्तार में 86 कलाओं का वर्णन है, प्रबन्ध कोष में 76 प्रकार की कलाएं उद्धरित है किंतु "क्षेमेन्द्र" की कृति "कलाविलास" में 318 (तीन सौ अठारह) प्रकार की कलाओं का वर्णन है जिनके विवरण इस प्रकार है -

A- 64 जीवनोपयोगी कलाएं ;
B- 32 धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष सम्बन्धी कलाएं ;
C- 32 मात्सर्य, शील , प्रभावमान सम्बन्धी कलाएं ;
D-  64 स्वच्छता सम्बन्धी कलाएं;
E-  64 वेश्याओं सम्बन्धी कलाएं ;
F - 10 भेषज कलाएं ;
G- 16 कायस्थ सम्बन्धी कलाएं; तथा
H- 100 सार कलाएं ।

किन्तु वात्स्यायन के कामसूत्र तथा उष्णश के शुक्रनीतिसार में मात्र 64 कलाओं का वर्णन है इसे ही प्रमाणिक माना गया है ।

कला के महत्व के बारे में कहा गया है - "कला गुण विहीन: नर: पशु पुच्छ विषाण हीन: ।। " अर्थात कला गुण विहीन व्यक्ति बिना सींग और पूछ के जानवर की तरह होता है ।

भारतीय कला का उल्लेख अथर्ववेद में किया गया है इसके उपवेद गन्धर्ववेद, धनुर्वेद आदि विभिन्न कलाओं पर आधारित है । भारतीय कलाओं की कुछ खास विशेषताएं है जो कुछ इस प्रकार है -

भारतीय कला की प्रथम विशेषता उसकी प्राचीनता है यहां पर भीमबेटका की गुफाओं के चित्र लगभग 5500 ई पू के माने जाते हैं ।

भारतीय कला संस्कृति प्रधान कला है इसमें भारतीय संस्कृति के सभी अंगों को अनुप्राणित किया गया है ।

क्षणे क्षणे यद नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयताया: । अर्थात जो प्रत्येक क्षण नवीनता को प्राप्त होता है यही शाश्वतता भारतीय कला की तृतीय विशेषता है ।

भारतीय कला की अगली विशेषता है कलाकार द्वारा श्रेय न लेना कलाकार ने अपना नाम कहीं अंकित नहीं किया है अपनी सम्पूर्ण कलाकृति में वह अपनी कला समाज को समर्पित करता है ।

भारतीय कला का विकास परम्परा द्वारा हुआ है , कोई अंधानुकरण नहीं किसी भी प्रभाव से परे तथा यह एक भावप्रधान कला है । इसने भारतीय संस्कृति की संवाहिका का कार्य भी किया है ।

भारतीय कला की अंतिम विशेषता है उसकी प्रतीकात्मकता , प्रत्येक चित्र का हर अंश एक दर्शन समाहित किये हुए है स्वयं में । आखिर गणपति का दांत एक ही क्यों है ? आखिर शिव ने विष को गले में ही क्यों धारण किया ? क्यों लक्ष्मी कमल पर आसीन है प्रत्येक चित्र के पीछे एक दर्शन है वे किसी न किसी बात के प्रतीक हैं ।

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