Tuesday, August 29, 2017

शब्द मीमांसा (1) - शब्द

#शिव_उवाच - #शब्द_मीमांसा

विषय- शब्द ।

शब्द संप्रेषक - मोटाभाई कनाणी ।

शिव कहते हैं कि - सम्प्रेषित विचारों को ग्रहण करने के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है -
प्रथम नेत्रग्राह्य, द्वितीय श्रोतग्राह्य तथा तृतीय स्पर्शग्राह्य । इनमें से श्रोतग्राह्य के रूप में उन्ही को ग्रहण किया जा सकता है जो भी ध्वनि अथवा सम्भाषण के माध्यम से आते है तथा सम्भाषण के लिए भाषा की आवश्यकता होती है क्योंकि भाषा की परिभाषा ही यही है,-

"भाष्यते इति भाषा"

अर्थात जिसे बोला जा सकता है वही भाषा है । भाषा की इकाई "ध्वनि" होती है तथा जब ध्वनि को लिखित रूप में व्यक्त करते हैं तो उसे "वर्ण"कहते हैं । वर्णों के मेल से ही शब्द का उदय होता है ।

शब्द को परिभाषित करते हुए कहा गया है "भाष् व्यक्ता याँ शब्द:" अर्थात जो भाषा को व्यक्त करता है वही शब्द है ।

प्रश्न - हे शिव! शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई ?

शिव कहते हैं यूं तो शब्द की उत्पत्ति परमात्मा द्वारा बनाये गए ऋत बिंदु के विस्फोट के साथ "ॐ" के रूप में हो गयी थी । किन्तु इसे पृथ्वी के मानवों तक पंहुचाने का श्रेय नटराज को है -

"नृत्यावसाने नटराज राजः, ननादि ढक्काम नौपंच बार: "

अर्थात एक बार नृत्य के दौरान भगवान नटराज ने नौ तथा पांच अर्थात चौदह (14) बार अपना डमरू बजाया जिससे चौदह सूत्रों का उद्भव हुआ जिसमें समस्त शब्द और वर्ण समाहित है । जिसे पाणिनि ने अपने ग्रन्थ में स्थान दिया है ।

प्रश्न - हे शिव!क्या शब्द का एकमात्र अर्थ यही भाषा के शब्द है ?

शिव कहते हैं - नहीं "शब्द" के अनेक अर्थ हैं उनमें से कुछ की व्याख्या करता हूँ ।
पांच महाभूतों में से द्वितीय आकाश के गुण को शब्द कहा गया है ।
फलित ज्योतिष में एक नक्षत्र समूह जिसमें उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद तथा रोहिणी आते हैं उन्हें भी शब्द से संज्ञापित किया गया है ।
व्याकरण में "रगण" का अठारहवां भेद जिसमें पहले एक लघु, एक गुरु तथा तीन लघु (llSl) आते हैं को भी शब्द कहा जाता है ।
तालू में एक शब्द नाम का रोग होता है जिस रोग में तालू  में ललाई तथा सूजन आ जाती है ।
सोमरस का वह भाग जो प्रातःकाल से सायंकाल तक बिना किसी देवता को अर्पित किए रखा रहता है उसे भी शब्द कहते हैं ।
इसी प्रकार पदार्थों से उत्पन्न होने वाली ध्वनियों आदि को मिलाकर लगभग 22 अर्थ होते हैं इस शब्द के ।

प्रश्न- हे शिव ! शब्द के इतने अर्थ है किंतु भाषा के शब्दों का अर्थ समझने के साधन क्या हैं ?

शिव कहते हैं - न्याय सिद्धांत मुक्तावली - शब्दखण्ड मे उल्लिखित है -

शक्तिग्रहं व्याकरणोपमानकोशाप्त वाक्याद् व्यव्हारतश्च ।
वाक्यस्य शेषाद् विवृत्तेर्वदन्ति सन्निध्यतः सिद्धपदस्य वृद्धा: ।।

अर्थात शब्दों के अर्थग्रहण के आठ साधन माने गए हैं -
व्याकरण, उपमान, कोष, आप्तवाक्य, लोकव्यवहार, वाक्यशेष, विवृत्ति तथा सिद्धपद का सानिध्य ।

प्रश्न -हे शिव ! भाषा के शब्दों के कितने भेद होते हैं ?

शिव कहते हैं - विभिन्न आधारों पर भिन्न - भिन्न भेद नहीं शब्दों के -
व्युत्पत्ति के आधार पर तीन भेद रूढ़, यौगिक तथा योगारूढ़ होते हैं ।

प्रयोग के आधार पर इनके आठ भेद होते हैं क्रमशः - संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया , क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक जिसमें से अंतिम चार प्रकार के शब्दों को हम सम्मिलित रूप से "अव्यय" कहते हैं । इन आठों को हम दो भागों में बांट सकते हैं "विकारी तथा अविकारी" शब्द ।

 अर्थ की दृष्टि से  शब्द दो प्रकार के होते हैं निरर्थक तथा सार्थक शब्द ।
शब्दों की अर्थग्रहण की प्रक्रिया को "शब्दों की शक्ति" कहा जाता है ये तीन प्रकार की क्रमशः अमिधा, लक्षणा तथा व्यंजना होती है ।

धन्यवाद हे पन्नगभूषणं शब्द उत्पत्तादि हेतवे ।
गंगा जटाजूट स्थितं नमामि हे पार्वती पतये ।।

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