#शब्द_मीमांसा #14C
शब्द - गुण (तमस)
शब्द संप्रेषक - अभिजीत दत्त जी ।
तीन गुणों में अंतिम तथा निम्नतम गुण है तामस भगवान कृष्ण गीता के अठारहवें अध्याय के 22वें श्लोक में कहते हैं -
यस्तु कृत्स्नवेदकस्मिन्कार्ये सक्तमहेतुकम् ।
अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् ।।
अर्थात जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है - वह तामस कहा गया है ।
आगे श्लोक 25 में श्रीभगवान कहते हैं , हे अर्जुन ! जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है वह तामस कर्म कहलाता है ।
जो कर्ता अयुक्त, शिक्षा से रहित, घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला आलसी तथा दीर्घसूत्री है वह - तामस कहलाता है । भगवान वासुदेव श्लोक 28 में व्याख्या करते हुए कहते हैं ।
श्लोक 32 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ; हे पार्थ ! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को ही "यह धर्म है" ऐसा मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य सम्पूर्ण पदार्थों को भिन्न मान लेता है, वह तामसी बुद्धि है ।
गोविंद श्लोक 35 में तामसी धारणाशक्ति के बारे में बताते हुए कहते हैं ; हे धनन्जय ! दुष्ट बुद्धि वाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा निद्रा, भय, चिंता और दुःख को तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता है - वह धारणाशक्ति तामसी है ।
हे भरतश्रेष्ठ ! जो सुख भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है - वह निद्रा, प्रमाद, और आलस्य से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है ।
चरक संहिता में तामस गुण के तीन प्रकार बताये गए हैं जो कि क्रमशः हैं -
प्रथम भेद तामस गुणों का है वह है पाशव अर्थात पशुवत इसके अंतर्गत जो व्यक्ति शरीर को अलंकृत करने की इच्छा न रखता हो , अपवित्र स्वभाव वाला, निंदित आचरण और भोजन वाला, मैथुनकामी, सोने के स्वभाव वाला पुरुष हो उसको "पाशव" प्रकृति का जानें ।
द्वितीय भेद तामस गुणों का है मात्स्य अर्थात जो डरपोक, अज्ञानी, भोजन का लोभी, अस्थिर चित्त, चंचल, काम और क्रोध में फंसा हुआ, भ्रमणशील, पानी की अधिक चाह रखने वाला हो उसे मात्स्य प्रकृति का जानें ।
तामस गुणों का तृतीय भेद बताया गया है वानस्पत्य अर्थात जो आलसी, केवल भोजन में ही दत्तचित्त, सब प्रकार से ज्ञान व बुद्धि से रहित जड़ पुरुष हो उसको वानस्पत्य प्रकृति का जानें ।
इस प्रकार यदि हम सार रूप से देखें तो सात्विक गुण वाला व्यक्ति वह है जो समाज और राष्ट्र को प्राथमिकता और स्व को द्वितीय स्थान पर रखता है ।
राजस गुणों वाला व्यक्ति वह है जो स्व को प्रथम स्थान पर रखता है येन केन प्रकारेण उसका स्व सिद्ध होना चाहिए ।
तमस गुणों वाला व्यक्ति वह है जो केवल समाज में रिष्टि करता है अर्थात उसका लाभ हो या न हो किन्तु समाज को नुकसान पँहुचें ।
शब्द - गुण (तमस)
शब्द संप्रेषक - अभिजीत दत्त जी ।
तीन गुणों में अंतिम तथा निम्नतम गुण है तामस भगवान कृष्ण गीता के अठारहवें अध्याय के 22वें श्लोक में कहते हैं -
यस्तु कृत्स्नवेदकस्मिन्कार्ये सक्तमहेतुकम् ।
अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् ।।
अर्थात जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है - वह तामस कहा गया है ।
आगे श्लोक 25 में श्रीभगवान कहते हैं , हे अर्जुन ! जो कर्म परिणाम, हानि, हिंसा और सामर्थ्य को न विचारकर केवल अज्ञान से आरंभ किया जाता है वह तामस कर्म कहलाता है ।
जो कर्ता अयुक्त, शिक्षा से रहित, घमंडी, धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला आलसी तथा दीर्घसूत्री है वह - तामस कहलाता है । भगवान वासुदेव श्लोक 28 में व्याख्या करते हुए कहते हैं ।
श्लोक 32 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ; हे पार्थ ! जो तमोगुण से घिरी हुई बुद्धि अधर्म को ही "यह धर्म है" ऐसा मान लेती है तथा इसी प्रकार अन्य सम्पूर्ण पदार्थों को भिन्न मान लेता है, वह तामसी बुद्धि है ।
गोविंद श्लोक 35 में तामसी धारणाशक्ति के बारे में बताते हुए कहते हैं ; हे धनन्जय ! दुष्ट बुद्धि वाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा निद्रा, भय, चिंता और दुःख को तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता है - वह धारणाशक्ति तामसी है ।
हे भरतश्रेष्ठ ! जो सुख भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है - वह निद्रा, प्रमाद, और आलस्य से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है ।
चरक संहिता में तामस गुण के तीन प्रकार बताये गए हैं जो कि क्रमशः हैं -
प्रथम भेद तामस गुणों का है वह है पाशव अर्थात पशुवत इसके अंतर्गत जो व्यक्ति शरीर को अलंकृत करने की इच्छा न रखता हो , अपवित्र स्वभाव वाला, निंदित आचरण और भोजन वाला, मैथुनकामी, सोने के स्वभाव वाला पुरुष हो उसको "पाशव" प्रकृति का जानें ।
द्वितीय भेद तामस गुणों का है मात्स्य अर्थात जो डरपोक, अज्ञानी, भोजन का लोभी, अस्थिर चित्त, चंचल, काम और क्रोध में फंसा हुआ, भ्रमणशील, पानी की अधिक चाह रखने वाला हो उसे मात्स्य प्रकृति का जानें ।
तामस गुणों का तृतीय भेद बताया गया है वानस्पत्य अर्थात जो आलसी, केवल भोजन में ही दत्तचित्त, सब प्रकार से ज्ञान व बुद्धि से रहित जड़ पुरुष हो उसको वानस्पत्य प्रकृति का जानें ।
इस प्रकार यदि हम सार रूप से देखें तो सात्विक गुण वाला व्यक्ति वह है जो समाज और राष्ट्र को प्राथमिकता और स्व को द्वितीय स्थान पर रखता है ।
राजस गुणों वाला व्यक्ति वह है जो स्व को प्रथम स्थान पर रखता है येन केन प्रकारेण उसका स्व सिद्ध होना चाहिए ।
तमस गुणों वाला व्यक्ति वह है जो केवल समाज में रिष्टि करता है अर्थात उसका लाभ हो या न हो किन्तु समाज को नुकसान पँहुचें ।
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