Tuesday, March 6, 2018

स्वाहा


शब्द मीमांसा २१

शब्द – स्वाहा

शब्द सम्प्रेषक – अंकुर पंड्या जी |

दिनांक – १९/०२/२०१८

हम जब यज्ञ करते हैं तो देवताओ के मन्त्रों के साथ “स्वाहा” शब्द का उच्चारण करते हैं | इसका यदि हम इसके शाब्दिक अर्थ का विवेचन करें तो पते हैं स्वाहा शब्द की उत्पत्ति “सु” उपसर्ग पूर्वक “आह्व़े” धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है आवाहन करना या बुलाना अर्थात यज्ञ करते समय देवों का अवाहन करना या बुलाना |

पौराणिक आख्यानों ( ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखंड, स्वहोपख्यान अध्याय ४०)के अनुसार जैसा की विदित है की भारत में सभी संस्थाओ का मानवीकरण किया गया है स्वाहा दक्ष प्रजापति की एक पुत्री थी जिनका विवाह अग्नि के साथ हुआ था तथा इनके तीन पुत्र उत्पन्न हुए पावक, पावमान और शुचि | दक्ष प्रजापति वास्तव में देव लोक में मानवों के प्रतिनिधि हैं उनमें वे सारे गुण दोष हैं जो एक मनुष्य में होते हैं इस प्रकार दक्ष एक मनुष्य है जो अग्नि को स्वाहा सौपता है अर्थात अग्नि का आवाहन करता है , उस आवाहित अग्नि से तीन पुत्र पैदा होते हैं |

इन पुत्रों में से पावक प्रथम है | गोभिलपुत्रकृत संग्रह में लौकिक कार्यों में अग्नि को पावक कहा गया है अर्थात जिससे हम भोजन आदि पकाते हैं | अर्थात सर्वप्रथम हमारे लौकिक कार्य इस अग्नि से सम्पन्न हुए और हमारा उदर भरण हुआ |

अग्नि और स्वाहा से उत्पन्न द्वितीय पुत्र का नाम है पावमान अर्थात ऊष्मा जिसके द्वारा हम उदर भरन के उपरांत अपने शरीर को ठंड से सुरक्षित रखने सहित कुछ अन्या लैकिक कार्य सम्पन्न करते हैं सूर्य तथा कृत्रिम अग्नि दोनों से हम इसे प्राप्त करते हैं वनस्पतियाँ इसी के प्रभाव से उत्पादन करती हैं |

अग्नि और स्वाहा का तृतीय पुत्र है शुचि जिसका अर्थ होता है शुद्धता अग्नि का तृतीय गुण भी शुद्ध करना होता है हम चीजों को शुद्ध करने तथा जीवाणु और विषाणु आदि सूक्ष्म जीवो से मुक्त करने के लिए अग्नि का सहारा पुराकाल से लेते आ रहे हैं इसे भी अग्नि का पुत्र बताया गया है |

भारत ऐसा देश रहा है और इसकी संस्कृति ऐसी रही है की यहाँ पर हमेशा ही कुछ भी प्राप्त होने पर उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद करने की परम्परा रही है जब यज्ञ की वेदी पर अग्नि को बैठाकर उन्हें स्वाहा के माध्यम से हवि दी जाती है तो ऐसा माना जाता है की वे उसे देवताओ तक पहुचाते हैं | व्याकरण के अनुसार स्वाहा शब्द की निरुक्ति है “सुष्ठु आहून्ते देवा अनेन इति स्वाहा” अर्थात “देवताओं को सही तरीके से आवाहित करना ही स्वाहा” है |

किन्तु यह भी ध्यातव्य है केवल देवों क्व आवाहन में ही स्वाहा शब्द का प्रयोग किया जाता है यदि आप पितरों को पिंड दान करते हैं तो वहां पर स्वाहा नहीं अपितु स्वधा शब्द का प्रयोग किया जायेगा स्वधा भी ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष की पुत्री हैं |

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