शब्द मीमांसा २३
शब्द – शिव
शब्द सम्प्रेषक – रचना
शर्मा जी |
दिनांक – २३/०२/२०१८
सबसे पहले मैं इस शब्द पर
मेरी बात रखने के लिए मुझे प्रेरित करने वाले को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करना
चाहता हूँ क्योकि इस शब्द में मेरा जीवन दर्शन निहित है | मेरे समस्त कार्यों की
प्रेरणा तथा मेरे शब्दों का स्रोत भी यही शब्द है या यूँ कहें की मेरा स्रष्टा यही
शब्द है | जब मैं किसी देव या उनके विग्रह की बात करता हूँ मेरा तात्पर्य सिर्फ
उनकी कृपा प्राप्त करने अथवा उनके पूजन मात्र से नही होता है मेरा मूल आशय होता है
उनके उस स्वरूप से प्राप्त होने वाले दर्शन और उनके हमारी सृष्टि के कल्याण में
होने वाले प्रयोग से होता है | आज हम बात करते हैं महादेव शिव की विषय बहुत बड़ा है
इसलिए प्रयास होगा की संक्षेप में ही वर्णन का प्रयास करूंगा |
शिव शब्द का अर्थ – शिव शब्द की उत्पत्ति “शि” से हुई है जिसके दो अर्थ हैं
प्रथम अर्थ में “जिसमें सब कुछ निहित है” तथा द्वितीय अर्थ में इसका अर्थ है
“सृजन” | शिव शब्द का द्वितीय वर्ण है “व” जो की अमृत का बीज है अर्थात जो अमृत है
इसका अर्थ है इसका एक और है “कल्याण” अर्थात शिव शब्द का शाब्दिक अर्थ है “जो
समस्त चराचर जगत के लिए अमृत की तरह कल्याणकारी है |” शिव शब्द की यही अवधारण भगवान शिव के मूल रूप
को व्याख्यायित करत हैं |
शिव का स्वरूप – मेरी तुच्छ बुद्धि के अनुसार शिव का जो स्वरूप है वो कुछ इस
तरह है | कपूर की तरह गौर वर्ण हैं अर्थात जो दिखने में ही आनन्ददायक है | शिव के
मस्तक पर विराजित होने वाला चन्द्र इस बात का परिचायक है की शिव की उत्पत्ति समय
की उत्पत्ति से पूर्व है | भारतीय काल गणना में चन्द्र को महत्वपूर्ण स्थान
प्राप्त है भारतीय काल गणना उन्हीं से प्रारम्भ होतीहै अतैव शिव समय से परे हैं
वो समय को धारण करते हैं |
भगवान शिव ऐसे देव हैं
जिनके पास तीन नेत्र है इसी कारण उन्हें त्रयम्बक भी कहा जाता है इसका एक और अर्थ
होता है तीनों लोकों की माता अर्थात जिनसे तीनों लोकों की उत्पत्ति हुई है | तृतीय
नेत्र प्रतीक है ज्ञान का जिस से हम काम ( असंगत इच्छाओं) को भस्म कर सकते हैं |
भगवान शिव अपने समस्त शरीर पर भस्म का लेपन करते हैं यह भस्म श्मशान की होती है जो
की प्रतीक है जीवन के अंत की अर्थात जब समस्त संसार का अंत हो जाता है तब भी ये
विद्यमान रहते हैं |
भगवान शिव की जटा में गंगा
विराजती है गंगा जो की समस्त संसार का कल्याण करती है किन्तु उनका वेग संसार सह
सके इसलिए शिव उन्हें धारण करते हैं अपनी जटा में अर्थात कोई कल्याणकारी वस्तु है
उससे होने वाली हानि को शून्य करते हैं |
भगवान शिव का कंठ नीला है
इसलिए उन्हें इसलिए नीलकंठ कहते हैं उनका कंठ नीला इसलिए है क्युकी संसार के
कल्याण के लिए सागर मंथन से उपजे हुए विष को ग्रहण किया और उसे कंठ में धारण किया
न तो उसे उदर में जाने दिया न मस्तिष्क में अर्थात वो विष न तो संसार को ही कष्ट
दे सके न ही स्वयं शिव को |
भगवान शिव बाघम्बर पर
विराजमान हैं बाघ को हिंसक पशु माना गया है ये प्रतीक बताता है की विश्व में
उत्पन्न होने वाली समस्त हिंसाओ का समन भगवान शिव करते हैं और प्राणियों कल्याण का
मार्ग प्रशस्त करते हैं | महादेव के गले पर सांप को स्थान मिला है जो की प्रतीक है
शिव द्वारा किसी के स्वभाव के आधार पर भेदभाव न करने का |
भगवान शिव के अस्त्रों में
उनके हाथ में त्रिशूल है जो की प्रतीकहै तीन गुणों (सत, रज तथा तम) का तथा साथ
डमरू धारण करते हैं जो की नाद का प्रतीक है तथा वे विभिन्न कलाओं के जन्मदाता है
शब्दों तथा नाट्यशास्त्र आदि के जन्मदाता हैं | भगवान शिव के वाहन हैं नंदी जो की
एक बैल हैं तथा जिनका मुख वानर जैसा है यह भगवान शिव को पशुपति बनाता है |
शिव के नाम –
शिव – समस्त प्राणियों हेतु
कल्याणकारी |
नीलकंठ – विष को कंठ
में धारण करने वाले हृदय तथा मस्तिष्क पर
विष का प्रभाव न पड़ने देने वाले ताकी आदि से अंत तक कल्याणकारी रहे तथा दोषियों को
दण्डित करने हेतु विष भी आवश्यक |
शर्व – शर्व का अर्थ होता
है जो मारता हो या नाश करता हो | अर्थात जो समस्त अन्धकार का नाश करता है |
बभ्रु – बभ्रु का अर्थ होता
है लाल रंग अर्थात अरुण जिसका अर्थ है सूर्य अर्थात जो सूर्य में है वही बभ्रु है
|
महेश्वर – माया के अधीश्वर अर्थात
माया को धारण करने वाले , माया उसे कहते हैं जो है तो किन्तु क्षणिक है |
शम्भू – जो स्वयं उत्पन्न हुआ है इसी कारण इन्हें निर्रीति कहा गया
है अर्थात जिनका जिनका जन्म ऋत (समस्त व्यवस्था )से पूर्व हुआ हो |
पिनाकी – पिनाक धनुष धारण करने वाले |
शशिशेखर – चंद्रमा अर्थात समय को धारण करने वाले |
वामदेव – अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले |
विरूपाक्ष – विचित्र अथवा तीन आंख वाले |
कपर्दी – जटा धारण करने वाले |
नीललोहित – नीले और लोहित अर्थात ताबें जैसा रंग धारण करने वाले |
शंकर – शुभं करोति यस्य सःअर्थात जो सबका मंगल करते हैं |
शूलपाणी – हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले |
षटवांगी- वेदांग के छः अंगो को धारण करने वाले |
विष्णुवल्लभ – भगवान विष्णु के अति प्रिय |
शिपिविष्ट – सीप में निवास करने वाले |
अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति |
श्रीकण्ठ – सुंदर कण्ठ वाले |
भक्तवत्सल – भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले |
भव – अर्थात समस्त संसार जिसमें व्याप्त है |
त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी |
शितिकण्ठ – सफेद कण्ठ वाले |
शिवाप्रिय – पार्वती के प्रिय |
उग्र – अत्यंत उग्र रूप वाले |
कपाली – कपाल धारण करने वाले |
कामारी – कामदेव के शत्रु,
अंधकार को हरने वाले | वैसे
कामदेव सृष्टि के निर्माण का आधार है किन्तु
जब उसके द्वारा सृष्टि में नैतिकता का
पतन होने लगे तो भगवान शिव उसे भी नष्ट कर देते हैं |
सुरसूदन – देवताओं का उद्धार करने वाले |
गंगाधर – गंगा को जटाओं में धारण करने वाले |
ललाटाक्ष – जिनके भाल पर ऑंखें हैं |
महाकाल – जो सृष्टि के अंत में कल का भी अंत करते है |
कृपानिधि – करुणा के सागर |
भीम – भयंकर या रुद्र रूप वाले |
परशुहस्त – हाथ में फरसा धारण करने वाले ( खासकर दक्षिण भारतीय
विग्रहों में ) |
मृगपाणी –पशुओ को धारण करने वाले इसी कारण इन्हें पूषण भी कहा जाता
है |
जटाधर – जटा रखने वाले |
कैलाशवासी – कैलाश पर निवास करने वाले |
कवची – कवच धारण करने वाले |
कठोर – अत्यंत मजबूत देह वाले |
त्रिपुरांतक – त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले | तीनो पुर लौहपुर ( शक्ति के दर्प का प्रतीक ),
रजतपुर
(रूप के दर्प) तथा स्वर्णपुर ( धन के दर्प का प्रतीक) |
वृषांक – बैल-चिह्न की ध्वजा वाले |
वृषभारूढ़ – बैल पर सवार होने वाले |
भस्मोद्धूलितविग्रह – भस्म लगाने वाले |
सामप्रिय – सामवेद के मन्त्र जिन्हें अत्यंत प्रिय हैं | रावण ने भी
सामवेद के मन्त्रों से भगवान शिव की
अराधना की थी |
स्वरमयी – सातों स्वरों में निवास करने वाले |
त्रयीमूर्ति – तीनों वेदों में निवास करने वाले |
अनीश्वर – जो स्वयं ही सबके स्वामी है |
सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले |
परमात्मा – सब आत्माओं में सर्वोच्च |
सोमसूर्याग्निलोचन – चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख
वाले |
हवि – आहुति रूपी द्रव्य वाले |
यज्ञमय – यज्ञ स्वरूप वाले |
सोम – जो उमा के साथ रहता हो |
पंचवक्त्र – पांच मुख वाले |
सदाशिव – नित्य कल्याण रूप वाले |
विश्वेश्वर- विश्व के ईश्वर |
वीरभद्र – गम्भीर स्वभाव वाले वीर |
गणनाथ – गणों के स्वामी |
प्रजापति – प्रजा का पालन- पोषण करने वाले |
हिरण्यरेता – हिरण्य अर्थात स्वर्ण जैसे तेज वाले |
दुर्धुर्ष – किसी से न हारने वाले |
गिरीश – पर्वतों के स्वामी |
गिरिश्वर – पर्वतों के अधिपति |
अनघ – जो पाप से परे है |
भुजंगभूषण – सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले |
भर्ग – पापों का नाश करने वाले |
गिरिधन्वा – मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले |
गिरिप्रिय – पर्वत को प्रेम करने वाले |
कृत्तिवासा – गजचर्म पहनने वाले |
पुराराति – पुरों का नाश करने वाले |
भगवान् – सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न |
प्रमथाधिप – जो सबका प्रथम शासक
है |
मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले |
सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले |
जगद्व्यापी- जगत में व्याप्त होकर रहने
वाले |
जगद्गुरू – जगत के गुरु |
व्योमकेश – आकाश जिनके बाल हैं |
महासेनजनक – कार्तिकेय (देवों के सेनापति) के पिता |
चारुविक्रम – सुन्दर पराक्रम वाले |
रूद्र – उग्र रूप वाले |
भूतपति – पंचमहाभूतों के स्वामी |
स्थाणु – स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले |
अहिर्बुध्न्य – कुण्डलिनी- धारण करने वाले |
दिगम्बर – आकाश रुपी वस्त्र को धारण करने वाले |
अष्टमूर्ति – आठ रूप वाले |
अनेकात्मा – अनेक आत्मा वाले |
सात्त्विक- सत्व गुण वाले |
शुद्धविग्रह – दिव्यमूर्ति वाले |
शाश्वत – नित्य रहने वाले |
खण्डपरशु – टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले |
अज – जन्म रहित |
पाशविमोचन – बंधन से छुड़ाने वाले |
मृड – सुखस्वरूप वाले |
पशुपति – पशुओं के स्वामी |
देव – स्वयं प्रकाश रूप |
महादेव – देवों के देव |
अव्यय – कभी समाप्त न होने वाले |
हरि – विष्णु समरूपी |
पूषदन्तभित् – पूषा के दांत उखाड़ने वाले |
अव्यग्र – व्यथित न होने वाले |
दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले |
हर – पापों को हरने वाले |
भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले |
अव्यक्त - इंद्रियों द्वारा प्रकट न किये जा सकने योग्य |
सहस्राक्ष - अनंत आँख वाले |
सहस्रपाद - अनंत पैर वाले |
अपवर्गप्रद – स्वर्ग से भी उच्च पद प्रदान करने वाले |
अनंत - देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद
से रहित |
तारक - तारने वाले |
परमेश्वर - प्रथम ईश्वर |
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